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Hindi Kahaniyom Mein Pravasi Jeevan Sangarsh

Published in
2020
Volume: 9
   
Issue: 10 (5)
Pages: 85 - 91
Abstract

सार

अपनी मातृभूमि को छोड़कर जो व्यक्ति या मानव समुदाय दूसरे देशों में जा बस्ते हैं उन्हें ‘प्रवासी’ शब्द से संबोधित करते हैं | प्रवासी हिन्दी साहित्य, आधुनिक हिन्दी साहित्य की नयी अंतदृष्टि है | अपने देश से अलग होकर एक अन्य देशकाल तथा परिवेश में जब वे बस्ते हैं तो उनका परिवेश बदलता है और प्रवासी के जीवन में विषमताएं और जटिलताएं पैदा होती हैं | जब प्रवास में बसे रचनाकार विभिन्न सामाजिक परिवेशों से प्रभावित होते हैं और अपने परिवेश और परिस्थितियों को अपनी रचना का विषय बनाते हैं तो यह साहित्य प्रवासी साहित्य कहलाता है | भूमंडलीकरण और वैश्वीकरण से प्रवास की प्रक्रिया एवं प्रवासी हिन्दी साहित्य में विस्तार हुआ है | प्रवासी साहित्यकारों को 2 वर्गों में विभाजित किया जा सकता है पहले वर्ग में वे भारतीय हैं जो 20 वीं सदी के पूर्वार्द्ध तक माँरीशस, गुयाना, त्रिनिनाद, फ़िजी आदि देशों में गिरमिट रूप में बस गए और दूसरा वर्ग उन प्रवासी भारतीयों का जो 20 वीं सदी के उत्तार्द्ध में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी जैसे देशों में बस गए | नए देश में इन लोगों ने स्वयं को स्थापित करते हुए जिन संघर्षों का अनुभव किया है उसी को अपने लेखन के माध्यम से आवाज़ दी | अभिमन्यु अनत, सुषम बेदी, मीनाक्षी पुरी, पूर्णिमा गुप्ता, दिव्या माथुर, तेजेन्द्र शर्मा, सुधा ओम ढिंगड़ा, सूर्यबाला आदि साहित्यकारों की रचनाएं जैसे उड़ान, मेरे अरमान, कमरा नंबर 103, चिड़िया और चील, देह की कीमत, बवंडर बाहर–भीतर, मानुष –गंध आदि में सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक परिवेश, पीढ़ियों में अंतर्द्वंद्व, नोस्टाल्जिया को वाणी देकर संवेदनशीलता के साथ यथार्थ को उकेरा है | अपने अनुभवों के नए आयाम एवं इसमें से जन्में विरोधी इच्छाओं को दो पीढ़ियों के अंतर्द्वद्व को पूरी शिद्दत के साथ चित्रित करते हुए उनके जीवन संघर्ष को चित्रित किया है | इस प्रपत्र के माध्यम से इन कहानीकारों की कहानियों का विश्लेषण कर इस जीवन संघर्ष को प्रस्तुत करने का प्रयास है |

मूल शब्द: प्रवासी साहित्य, कहानी, सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश, नोस्टाल्जिया, संघर्ष ।



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JournalInternational Journal of Multidisciplinary Educational Research
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